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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक संगठन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2668
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक संगठन

  अध्याय- 5

एक सफल व्यवसायी के गुण

(Qualities of a Successful Businessman)

 

प्रश्न- एक सफल व्यवसायी कौन होता है? उन गुणों को बताइये जो आपके विचार में एक सफल व्यवसायी में होने चाहिए।

अथवा
व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिये एक व्यापारी में कौन-कौन से गुण आवश्यक हैं? विस्तार से समझाइए।

उत्तर -

सफल व्यवसायी के गुण
(Qualities of a Successful Businessman)

प्रत्येक व्यवसायी व्यवसाय प्रारम्भ करने से पूर्व यही आशा करते हैं कि वह अपने व्यवसाय में सफलता प्राप्त करे, परन्तु काफी व्यवसायियों को विवश होकर कुछ समय के बाद अपने व्यवसाय को बन्द करना पड़ता है। इसकी मुख्य वजह यह कि उसमें उन गुणों का अभाव पाया जाता है जो एक सफल व्यवसायी के लिये आवश्यक होते हैं। व्यापार में सफलता पाने के लिये किसी व्यापारी में कौन-कौन से गुण होने चाहिए, इस विषय में विभन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं -

राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के अनुसार, "सफलता अति सरल है किन्तु हमें कठिन परिश्रम करना होगा तथा सहनशीलता एवं विश्वासपात्र बनना होगा। व्यक्ति को बिना पीछे की ओर देखे हुए निरन्तर आगे बढ़ते चले जाना चाहिए।'

श्री एस. आर. डाबर के विचार में, "अच्छी तारतम्य बुद्धि व्यावसायिक नैतिकता, व्यावसायिक योग्यता, व्यावसायिक शिक्षा एवं पर्याप्त पूँजी आदि बातों पर व्यावसायिक सफलता निर्भर करती है।"

सफल व्यवसायी में निम्नलिखित गुणों का होना वाँछनीय होता है -

1. अच्छा व्यक्तित्व (Good Personality ) - सामान्य रूप से व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति विशेष की मुखाकृति से होता है। ऐसा प्रायः माना जाता हैं कि आकर्षक, गौर वर्ण, हृष्ट-पुष्ट व लम्बी कद- काठी वाला व्यक्ति ज्यादा अच्छे व्यक्तित्व वाला होता है, परन्तु यह अंशतः ही सत्य है। अच्छे व्यक्तित्व में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

(i) सुन्दर / स्वस्थ एवं प्रभावशाली चेहरा (Good / Healthy and Influenctial Face) - व्यवसायी का चेहरा न तो 'कामदेव' का ही अवतार हो और न इतना कुरूप कि लोग उसकी शक्ल से डरें। वह विचित्र मुखाकृति के कारण कार्टून सा लगेगा और इस प्रकार स्वभावतः ही हास्यास्पद बन जाये। कहने का तात्पर्य है कि व्यवसायी का चेहरा स्वस्थ एवं प्रभावशाली हो।

(ii) प्रसन्न मुद्रा ( Smiling Face ) - व्यवसायी को ग्राहकों आदि पर अच्छा प्रभाव डालने के लिये प्रसन्न मुद्रा में ही बातें करनी चाहिए। रोनी सूरत से बातें करने पर प्रभाव बुरा पड़ेगा। प्रसन्न मुद्रा में बातचीत करना ज्यादा प्रभावपूर्ण होता है।

(iii) उत्तम स्वास्थ्य (Good Health) - प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिये अच्छा स्वास्थ्य आवश्यक होता है। अच्छा स्वास्थ्य होने पर व्यवसायी परिश्रम व लगन से कार्य करेगा। एक आलसी के लिये व्यवसाय में कोई स्थान नहीं है।

(iv) व्यवसाय में रुचि (Aptitude for Business ) - जिस व्यवसाय को व्यवसायी ने चुना हो उसमें उसकी रुचि हो अन्यथा उसे सफलता नहीं मिल सकती।

(v) आत्म- निश्चय (Self-determination) - व्यवसायी परामर्श हर व्यक्ति से ले सकता है और दूसरों के अनुभव से लाभ भी उठा सकता है, परन्तु उसे इस कहावत पर चलना चाहिए "सुनें सबकी, करे मन की।'

(vi) आत्म-विश्वास (Self-confidence) - एक सफल व्यवसायी में आत्म-विश्वास का गुण होना चाहिए। आत्म-विश्वास की कमी होने पर वह अपना व्यवसाय सफलतापूर्वक नहीं चला सकता।

(vii) साहस (Enthusiasm ) - व्यवसायी में कार्य के प्रति साहस व उत्साह होना चाहिए। उसे सदैव आशावादी होना चाहिए। व्यवसायी को सफल होने के निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए -

• कार्य / व्यवसाय के प्रति समर्पण,
• कठिन प्रयास,
• साहसपूर्णता, आदि।

(viii) विनम्रता (Courtesy ) - लाभार्जन के साथ नम्रता को ध्यान में रखना चाहिए। नम्रता की लागत कुछ भी नहीं होती परन्तु यह सब कुछ दे सकती है। विनम्रता का गुण से व्यवसायी ग्राहकों को जीत सकता है। तुलसीदास जी का वचन है-

"तुलसी मीठे वचनं ते सुख उपजत चहुँ ओर,
वशीकरण एक मन्त्र है तज दे वचन कठोर।"

(ix) चातुर्यपूर्ण (Tactful ) - व्यवसायी में चतुरता का गुण होना चाहिए। यदि उसमें चातुर्य नहीं है तो वह सफल व्यवसायी नहीं बन सकता।

2. अच्छा चरित्र (Good Character) - व्यवसायी का चरित्र अच्छा होना चाहिए। आँखों के द्वारा, अपनी वाणी के द्वारा, अपने हाव-भाव के द्वारा, कथन के तत्व के द्वारा अपने ग्राहकों में अपना मन डाल सकता है।" चरित्रबल के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश है -

(i) सत्य एवं ईमानदारी में विश्वास,
(ii) उच्च आदर्श,
(iii) दूरदर्शिता,
(iv) नियमितता,
(v) कर्त्तव्यनिष्ठा,
(vi) कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति,
(vii) नम्रता,
(viii) नैतिकता।
एक पुरानी कहावत है
“If money is last, nothing is lost,
If health is last, something is last, and
If character is last, everything is last, and

3. मेहनती ( Deligent ) - मेहनत को सफलता की चाबी माना जाता है। अतः व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिये व्यवसायी को अथक परिश्रम उतनी ही सफलता प्राप्त होगी तथा व्यवसाय प्रतिष्ठित होगा। यदि व्यवसाय का मालिक स्वयं आलसी है, तो उसके कर्मचारी भी कामचोर होंगे। अतएव अन्य लोगों से काम लेने के लिये पहले स्वयं को कर्मशील बनना चाहिए।

4. ईमानदारी (Honesty ) - व्यवसाय में ईमानदारी को सर्वोत्तम नीति माना जाता है। व्यवसाय में सफल होने के लिये यह आवश्यक होता है कि व्यावसायिक नीतियाँ ईमानदारीपूर्ण हों। व्यवसाय में ईमानदारी के बिना सफलता प्राप्त करना असम्भव है। बेईमानी से कुछ समय तक बढ़ सकते हैं, किन्तु हमेशा नहीं। ईमानदारी से संस्था की ख्याति में वृद्धि होती हैं, जो सफलता में बहुत सहायक सिद्ध होती है। कथन भी है "ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है।' व्यापारी झूठ बोलकर जिस व्यक्ति को एक बार ग्राहक बनाता है उनको हमेशा के लिये खो बैठता है।

5. विवेकाशीलता, कल्पना शक्ति एवं महत्वाकांक्षा (Rationality, Imaginary and Ambition) - व्यवसायी को कल्पनाशील व महत्वाकांक्षी होना चाहिए। व्यवसाय शुरू करने पूर्व उसे व्यवसाय की अच्छाइयों व कमियों को समझ लेने में सक्षम होना चाहिए। व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिये भविष्य के विषय में ठीक प्रकार से अनुमान लगाना आवश्यक है। कल्पना-शक्ति विकसित होने पर व्यक्ति महत्वाकांक्षी बन जाता है। इस भावना से ही व्यापार में सफलता मिलती है। जो भी कार्य करें उसके कारण एवं परिणाम पर पहले भली-भाँति विचार कर लिया जाय और फिर उसे दृढ़ निश्चय से किया जाय।

6. सतर्कता ( Alertness ) - व्यवसायी को बहुत ही सतर्क अथवा सजग रहना चाहिए। विज्ञान के चमत्कारिक आविष्कारों का प्रयोग व्यावसायिक क्षेत्र में भी प्रचुरता के साथ किया जाने लगा है। व्यवसायी को विश्व की परिवर्तनशील गतिविधियों की भी जानकारी हो। बाहरी जगत से उसे मुँह नहीं मोड़ लेना चाहिए। उसकी स्मरण शक्ति अच्छी हो क्योंकि उसे व्यावसायिक मामलों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने पड़ते हैं।

 व्यावसायिक सामर्थ्य, शिक्षा प्रशिक्षण (Business Ability, Education and Training) - प्रतियोगिता के समय में केवल पैतृक गुणों या अनुभव से ही काम नहीं चलता। इसके लिये सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही प्रकार की शि7क्षा प्राप्त करना आवश्यक है। अच्छी व्यावसायिक योग्यता, व्यावसायिक शिक्षा एवं पर्याप्त पूँजी पर ही सफलता निर्भर करती है। व्यावसायिक योग्यता प्राप्त कर लेने के पश्चात् व्यापारी अवसर से लाभ ले सकता है।

8. शीघ्र निर्णयन क्षमता ( Quick Decision Making Power) - व्यवसायी को अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार जल्दी ही स्वतः निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह शीघ्र ही विभिन्न समस्याओं का समाधान कर सके।

9. ग्राहकों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने की क्षमता (Ability to Make Congenial Relations with Customers) - व्यवसायी के समक्ष ग्राहकों की पूर्ण सन्तुष्टि का उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि " समस्त व्यवसाय का केन्द्र ग्राहक" ही है। उसे चाहिए कि वह अपने ग्राहकों को पूर्ण रूप से सन्तुष्ट रखे जिससे कि वे सदा के लिये उसके होकर रहे। अतः ग्राहकों से मित्र जैसा व्यवहार करके अपनी सेवाओं से उन्हें सन्तुष्ट रखना चाहिए। जो व्यापारी ग्राहकों को सन्तुष्ट करना नहीं जानता, वह कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। उसे अपना ध्येय सेवा करना बनाना चाहिए। लाभ की अपेक्षा सेवा को प्राथमिकता देने से सफलता मिलेगी।

10. अनुशासनप्रिय (Disciplinarian) - कर्मचारियों से अनुशासन में रहने की आशा करने वाले व्यवसायी को स्वयं भी अनुशासित होना चाहिए। यदि वह स्वयं अनुशासन में है तो उसके नेतृत्व में किया जाने वाला कार्य अनुशासनयुक्त होगा।

11. व्यवसाय की ख्याति (Goodwill of Business) - 'ख्याति' व्यवसायी व व्यवसाय की सफलता की आधारशिला है। 'ख्याति' धीरे-धीरे ही अर्जित की जाती है और उच्चतम शिखर पर पहुँचने में बहुत समय लग जाता है, किन्तु असावधानी होने पर यह समाप्त हो जाती है। व्यापार की ख्याति बढ़ाई जाय और इसके प्रति सदैव सतर्क रहा जाय। अमरीका की न्यूपोर्ट, न्यूशिप बिल्डिंग एण्ड ड्राई डॉक कम्पनी के संस्थापक ने अपनी कम्पनी की ख्याति को बनाये रखने के लिये यह सूत्र बना लिया था कि "हम सदैव अच्छे जहाज बनायेंगे, यदि सम्भव हुआ तो लाभ पर, आवश्यक हुई तो हानि पर किन्तु सदा अच्छे ही जहाज बनायेंगे।"

12. कर्मचारियों के साथ सद्व्यवहार (Respect for Employees) - किसी व्यवसाय के लिये कर्मचारीगण महत्वपूर्ण होते हैं। कर्मचारियों के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए और उनकी कुशलता, कल्याण तथा सन्तुष्टिं का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। कर्मचारियों को सन्तुष्ट किये बिना व्यापारी अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है।

13. साथ-साथ कार्य करने की भावना (Co-operative Spirit) - व्यवसायी में अन्य लोगों की सहायता व सहयोग करने तथा मिलकर कार्य करने की भावना होनी चाहिए। यदि उसमें सहकारिता का भाव नहीं होगा तो कठिन समय में वह अन्य लोगों से सहयोग भी नहीं ले पायेगा।

14. समय का मूल्यांकक (Valuer of Time) - समय की धन है। व्यवसायी के लिये समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। यदि व्यवसायी सही समय पर निर्णय नहीं ले पाता, तो वह भारी हानि उठा सकता है।

15. अभिरुचि (Aptitude) - व्यवसाय में सफल होने के लिये व्यवसायी में अपने व्यवसाय के प्रति स्वाभाविक अभिरुचि रखनी चाहिए। अभिरुचि न होने पर कार्य में रुचि नहीं रहती जिससे व्यवसाय असफल हो सकता है। स्वाभाविक अभिरुचि से व्यक्ति श्रम करने के लिये प्रेरित होता है तथा सफल होता है।

इस प्रकार व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने के लिये व्यापारी में व्यावसायिक सफलता प्राप्त करने के गुण होने चाहिए। परन्तु इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि यदि उसमें विभिन्न गुण नहीं हैं तो वह एक सफल व्यापारी नहीं हो सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि जिसमें उपरोक्त में से जितने अधिक गुण होंगे वह उतना ही अधिक सफल व्यापारी होगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- व्यवसाय का अर्थ बताइये। इसकी विशेषताओं तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- व्यवसाय की विशेषताएं बताइये।
  3. प्रश्न- व्यवसाय के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- 'व्यवसाय किसी भी राष्ट्र की संस्कृति में एक प्रधान संस्था है, राष्ट्र के साधनों का एक प्रमुख उपभोक्ता एवं प्रबन्ध है तथा रोजगार एवं आय का मूल स्रोत है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- व्यवसाय की परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यवसाय का क्षेत्र समझाइये।
  7. प्रश्न- 'व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होना चाहिए या सेवा करना अथवा दोनों ही? इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  8. प्रश्न- व्यवसाय के विकास की अवस्थाएँ समझाइए।
  9. प्रश्न- व्यापार तथा वाणिज्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  10. प्रश्न- वाणिज्य तथा उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- व्यापार तथा उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- 'व्यवसाय एक सामाजिक क्रिया है। समझाइये |
  13. प्रश्न- व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग का परस्पर सम्बन्ध बताइये।
  14. प्रश्न- व्यापार किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है ?
  15. प्रश्न- वाणिज्य, व्यवसाय व व्यापार में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
  16. प्रश्न- व्यवसाय के उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- यदि व्यापार वाणिज्य का अंग है तो उद्योग उसका आधार है। इस कथन की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- व्यवसाय की अवधारणा स्पष्ट करो।
  19. प्रश्न- व्यावसायिक संगठन से आप क्या समझते हैं? इसका महत्व अथवा लाभ बताइए।
  20. प्रश्न- व्यावसायिक संगठन का महत्व या लाभ समझाइए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक संगठन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- व्यावसायिक संगठन के उद्देश्य क्या हैं?
  23. प्रश्न- व्यावसायिक संगठन का कार्यक्षेत्र समझाइए।
  24. प्रश्न- आधुनिक व्यवसाय का क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ क्या होती हैं? ई-व्यवसाय का वर्णन कीजिए। इसके लाभ एवं हानियाँ भी बताइये।
  25. प्रश्न- ई-व्यवसाय क्या है?
  26. प्रश्न- ई-व्यवसाय के लाभ समझाइये।
  27. प्रश्न- ई-व्यवसाय की हानियाँ समझाइये |
  28. प्रश्न- बाह्यस्रोतीकरण अथवा व्यावसायिक प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण की अवधारणा समझाइए। इसके लाभ एवं हानियाँ क्या हैं?
  29. प्रश्न- बाह्यस्रोतीकरण के लक्षण समझाइये।
  30. प्रश्न- बाह्यस्रोतीकरण अथवा व्यावसायिक प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण के लाभ समझाइये |
  31. प्रश्न- बाह्यस्रोतीकरण की हानियाँ क्या हैं?
  32. प्रश्न- उन सेवाओं को समझाइए जिनका बाह्यस्रोतीकरण किया जा सकता है।
  33. प्रश्न- ई-व्यवसाय का क्षेत्र बताइये।
  34. प्रश्न- ई-व्यवसाय तथा परम्परागत व्यवसाय में अन्तर बताइये।
  35. प्रश्न- ई-व्यवसाय के क्रियान्वयन हेतु जरूरी संसाधन बताइये।
  36. प्रश्न- एक नये व्यवसाय की स्थापना करने से पूर्व ध्यान में रखे जाने वाले घटक कौन-कौन से हैं?
  37. प्रश्न- नये व्यवसाय के सम्बन्ध में प्रारम्भिक अन्वेषण से आप क्या समझते हैं?
  38. प्रश्न- व्यवसाय संगठन के प्रारूप का चयन करते समय ध्यान में रखे जाने बिन्दु कौन-कौन से हैं?
  39. प्रश्न- व्यवसाय की स्थापना के घटकों पर विचार करते समय वित्तीय नियोजन को समझाइये।
  40. प्रश्न- व्यवसाय के स्थान, स्थिति एवं आकार को बताइए।
  41. प्रश्न- क्या व्यवसाय की स्थापना में किन्हीं कानूनी औपचारिकताओं को ध्यान में रखना होता है?
  42. प्रश्न- व्यवसाय की स्थापना करने में निम्नलिखित विचारणीय कारकों को समझाइये - (a) संयन्त्र अभिन्यास (b) क्रय तथा विक्रय नीति (c) प्रबन्ध (d) कार्यालय का उचित संगठन।
  43. प्रश्न- एक सफल व्यवसायी कौन होता है? उन गुणों को बताइये जो आपके विचार में एक सफल व्यवसायी में होने चाहिए।
  44. प्रश्न- ऐसे कौन-से घटक हैं जिन पर व्यावसायिक संगठन के प्रारूप का चयन आधारित होता है? समझाइए।
  45. प्रश्न- व्यावसायिक इकाइयों के स्वामित्व के विभिन्न प्रकार अथवा प्रारूप कौन-कौन से हैं? एकाकी व्यापार को परिभाषित कीजिए तथा इसकी प्रधान विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- एकाकी व्यापार से आप क्या समझते हैं?
  47. प्रश्न- एकाकी व्यापार की विशेषताएँ समझाइए।
  48. प्रश्न- एकाकी व्यापार के गुण एवं दोष समझाइए।
  49. प्रश्न- एकाकी व्यापार की हानियाँ या दोष समझाइए।
  50. प्रश्न- एकाकी व्यापार का सामाजिक महत्व बताइए।
  51. प्रश्न- क्या एकाकी व्यापार प्राचीन जंगली युग का अवशेष माना जाता है?
  52. प्रश्न- एकाकी व्यापार की सीमाएँ एवं भविष्य बताइए।
  53. प्रश्न- "एकाकी नियंत्रण विश्व में सर्वश्रेष्ठ है यदि वह एक व्यक्ति इतना बड़ा है कि व्यवसाय को भली प्रकार संभाल सके।' व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- साझेदारी का आशय एवं परिभाषाएँ दीजिए। इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- साझेदारी की विशेषताएँ, प्रकृति या लक्षण क्या हैं?
  56. प्रश्न- "व्यवसाय के अन्तर्गत साझेदारी प्रारूप अनुपयोगी बन चुका है इसे मिटा देना चाहिए।" इस कथन की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
  57. प्रश्न- साझेदारी की हानियाँ बताइए।
  58. प्रश्न- "साझेदारी का अधिक दिन चलना कठिन है।' आदर्श साझेदारी की विशेषताएँ बताइए और यह सिद्ध कीजिए कि आदर्श साझेदारी अधिक समय तक चल सकती है।
  59. प्रश्न- आदर्श साझेदारी की विशेषताएँ बताइए।
  60. प्रश्न- क्या आदर्श साझेदारी ज्यादा समय तक चल सकती है?
  61. प्रश्न- साझेदारी संलेख क्या है? इसमें किन-किन महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख रहता है?
  62. प्रश्न- साझेदारी तथा सहस्वामित्व में अन्तर बताइये।
  63. प्रश्न- क्या साझेदारी फर्म का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है? एक साझेदारी फर्म का रजिस्ट्रेशन न कराने के क्या परिणाम होते हैं?
  64. प्रश्न- "लाभों का बँटवारा करना ही साझेदारी के अस्तित्व का निश्चयात्मक प्रमाण नहीं है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- साझेदारी के भेद कीजिए तथा सीमित साझेदारी की विशेषताएँ लिखिए।
  66. प्रश्न- एकाकी व्यापार तथा साझेदारी से किस प्रकार भिन्न है?
  67. प्रश्न- साझेदारी तथा संयुक्त हिन्दू परिवार व्यवसाय में अन्तर बताइये।
  68. प्रश्न- दीर्घ उत्तरीय संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी क्या है? इसकी विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
  69. प्रश्न- एक कम्पनी में कौन-कौन सी विशेषताएँ पायी जाती हैं? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  70. प्रश्न- संयुक्त पूँजी कम्पनी के गुण एवं दोष बताइये।
  71. प्रश्न- संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी के दोष बताइये।
  72. प्रश्न- निजी कम्पनी तथा लोक कम्पनी को परिभाषित कीजिए। इनमें अन्तर बताइये।
  73. प्रश्न- लोक कम्पनी से आपका क्या आशय है?
  74. प्रश्न- सार्वजनिक कम्पनी की विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- निजी कम्पनी तथा सार्वजनिक कम्पनी में अन्तर बताइए।
  76. प्रश्न- एक व्यक्ति कम्पनी के बारे में बताइये।
  77. प्रश्न- एक व्यक्ति कम्पनी के निर्माण सम्बन्धी प्रावधान बताइये।
  78. प्रश्न- एक व्यक्ति कम्पनी के सम्बन्ध कम्पनी अधिनियम, 2013 में दिये गये प्रावधान बताइये।
  79. प्रश्न- कम्पनी और साझेदारी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- कम्पनी के निगमन की विधि के अनुसार कम्पनियाँ कितने प्रकार की होती हैं? उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित को समझाइए - (i) विदेशी कम्पनी (ii) सूत्रधारी कम्पनी |
  82. प्रश्न- निष्क्रिय कम्पनी पर टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- एक व्यक्ति कम्पनी को प्राप्त विशेषाधिकार / छूटें बताइये।
  84. प्रश्न- बहु-व्यक्ति कम्पनी तथा एक व्यक्ति कम्पनी में अन्तर बताइये।
  85. प्रश्न- (i) एकाकी व्यापार की तुलना में संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी से होने वाले लाभ बताइये। (ii) क्या संयुक्त पूँजी कम्पनी प्रारूप साझेदारी प्रारूप पर सुधार है?
  86. प्रश्न- सहकारी संगठन से आप क्या समझते हैं? संगठन के सहकारी प्रारूप के लाभ-दोषों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सहकारिता या सहकारी संगठन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  88. प्रश्न- सहकारी संगठन के लाभ बताइये।
  89. प्रश्न- सहकारी संगठन अथवा सहकारिता के दोष बताइये।
  90. प्रश्न- सहकारिताओं के प्रारूप या प्रकार बताइये।
  91. प्रश्न- सहकारी संगठन तथा संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी में क्या अन्तर है?
  92. प्रश्न- स्थानीयकरण से क्या आशय है? सार्जेन्ट फ्लोरेन्स के औद्योगिक स्थान निर्धारण सिद्धान्त का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- सार्जेन्ट फ्लोरेन्स के स्थानीयकरण सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  94. प्रश्न- सार्जेन्ट फ्लोरेन्स के सिद्धान्त की आलोचनाएं बताइए।
  95. प्रश्न- संयन्त्र स्थान निर्धारण से आप क्या समझते हैं? संयन्त्र स्थान निर्धारण को प्रभावित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले घटकों को समझाइए।
  97. प्रश्न- अल्फ्रेड वेबर का स्थानीयकरण का सिद्धान्त क्या है? इसे कौन-कौन से घटक प्रभावित करते हैं?
  98. प्रश्न- वेबर के स्थानीयकरण सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
  99. प्रश्न- वेबर तथा फ्लोरेन्स के औद्योगिक स्थानीयकरण के सिद्धान्तों में अन्तर बताइये।
  100. प्रश्न- संयन्त्र स्थानीयकरण के उद्देश्य व महत्व लिखिए।
  101. प्रश्न- संयन्त्र स्थानीयकरण के लाभ-दोष समझाइये।
  102. प्रश्न- संयन्त्र अभिन्यास से आप क्या समझते हैं? एक आदर्श संयन्त्र अभिन्यास के लक्षण बताइए। वे कौन से उद्देश्य हैं जिन्हें प्रबन्ध वर्ग संयन्त्र अभिन्यास के माध्यम से प्राप्त करना चाहता है?
  103. प्रश्न- आदर्श संयन्त्र अभिन्यास के लक्षण बताइए।
  104. प्रश्न- संयन्त्र अभिन्यास के उद्देश्य बताइए।
  105. प्रश्न- संयन्त्र अभिन्यास के प्रकार बताइए तथा इनके सापेक्षिक लाभ तथा दोष बताइए।
  106. प्रश्न- उत्पाद अथवा रेखा संयन्त्र अभिन्यास के लाभ-दोष समझाइए।
  107. प्रश्न- कार्यात्मक अथवा प्रक्रिया संयन्त्र अभिन्यास क्या होता है? इसके लाभ व हानियाँ समझाइए।.
  108. प्रश्न- स्थिर सामग्री वाला संयन्त्र अभिन्यास अथवा स्थायी स्थिति संयन्त्र अभिन्यास क्या होता है? इसके गुण-दोष बताइए।
  109. प्रश्न- संयुक्त संयन्त्र अभिन्यास को समझाइए।
  110. प्रश्न- अच्छे संयन्त्र अभिन्यास का महत्व बताइए।
  111. प्रश्न- उचित रूप से नियोजित संयन्त्र अभिन्यास के सिद्धान्त बताइए।
  112. प्रश्न- संयन्त्र अभिन्यास को प्रभावित करने वाले घटकों को समझाइए।
  113. प्रश्न- व्यावसायिक इकाई से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक इकाई अथवा औद्योगिक इकाई के आकार के माप अथवा प्रमाप या मानदण्ड समझाइये |
  114. प्रश्न- व्यावसायिक या औद्योगिक इकाई के आकार की माप या प्रमाप अथवा मापदण्ड समझाइये।
  115. प्रश्न- व्यवसाय के अनुकूलतम आकार से आप क्या समझते हैं? अनुकूलतम आकार की इकाई निर्धारित करने वाले तत्व कौन-कौन हैं, इनकी व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- व्यावसायिक इकाई के अनुकूलतम आकार को निर्धारित करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं, विस्तारपूर्वक समझाइये।
  117. प्रश्न- बड़े आकार से प्राप्त होने वाली मितव्ययिताएँ या बचतें समझाइये।
  118. प्रश्न- व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाई के आकार को निर्धारित करने वाले घटक बताइये।
  119. प्रश्न- प्रतिनिधि फर्म तथा साम्य फर्म क्या हैं?
  120. प्रश्न- अन्तर कीजिए - (a) अनुकूलतम फर्म तथा प्रतिनिधि फर्म (b) अनुकूलतम फर्म तथा साम्य फर्म।
  121. प्रश्न- बड़े आकार वाली व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाइयों की हानियाँ बताइये।
  122. प्रश्न- व्यावसायिक संयोजन से आप क्या समझते हैं? संयोजन आन्दोलन को प्रेरित करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं? समझाइये।
  123. प्रश्न- व्यावसायिक संयोजन की विशेषताएँ बताइये।
  124. प्रश्न- व्यावसायिक संयोजन के आन्दोलन को प्रेरित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  125. प्रश्न- संयोजन के विभिन्न प्रारूपों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- चेम्बर ऑफ कामर्स क्या है? इसके उद्देश्य व कार्य बताइये।
  127. प्रश्न- श्रम संघ को समझाइये।
  128. प्रश्न- अनौपचारिक ठहराव से आप क्या समझते है? इसके प्रकार एवं लाभ-दोष बताइये।
  129. प्रश्न- सन्धान का वर्णन कीजिए।
  130. प्रश्न- उत्पादक संघ क्या होता है?
  131. प्रश्न- प्रन्यास क्या होता है? इसके गुण व दोष लिखिए।
  132. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) सूत्रधारी कम्पनी (b) सामूहिक हित
  133. प्रश्न- पूर्ण संघनन से आप क्या समझते है? इनके गुण व दोष लिखिए।
  134. प्रश्न- विभिन्न प्रकार के संयोजनों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  135. प्रश्न- औद्योगिक संयोजन क्या हैं? इसके लाभ व दोष बताइए।
  136. प्रश्न- मिश्रित संयोजन क्या है? इसके उद्देश्य बताइए।
  137. प्रश्न- सेवा संयोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  138. प्रश्न- सहायक संयोजन को समझाइए।
  139. प्रश्न- क्या व्यावसायिक संयोजन उपभोक्ताओं के हित में है?
  140. प्रश्न- व्यावसायिक संयोगों के लाभों एवं हानियों की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- क्षैतिज संयोजन तथा उदग्र संयोजन में अन्तर बताइये।
  142. प्रश्न- पूल से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ एवं उद्देश्य बताइये।
  143. प्रश्न- संघ या पूल के लाभ एवं हानियाँ बताइये।
  144. प्रश्न- संघों के प्रकार समझाइये।
  145. प्रश्न- संयोजन के उद्देश्य बताइये।
  146. प्रश्न- उत्पादक संघ कार्टेल तथा संघनन में अन्तर बताइये।
  147. प्रश्न- प्रन्यास एवं उत्पादक संघों में अन्तर बताइये।
  148. प्रश्न- प्रन्यास एवं सूत्रधारी कम्पनी में क्या अन्तर है?
  149. प्रश्न- विवेकीकरण से आप क्या समझते हैं? विवेकीकरण को प्रोत्साहित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं?
  150. प्रश्न- विवेकीकरण की विशेषताएं बताइये।
  151. प्रश्न- विवेकीकरण को प्रोत्साहित करने वाले घटक अथवा कारण कौन-कौन हैं?
  152. प्रश्न- विवेकीकरण से आप क्या समझते हैं। इसके लाभों को बताइये।
  153. प्रश्न- विवेकीकरण के लाभों को बताइये।
  154. प्रश्न- "भारतीय उद्योगों का भविष्य विवेकीकरण में निहित है।' इस कथन की विवेचना कीजिए तथा विवेकीकरण के लाभों को समझाइये |
  155. प्रश्न- विवेकीकरण तथा वैज्ञानिक प्रबन्ध में अन्तर कीजिए।
  156. प्रश्न- विवेकीकरण तथा राष्ट्रीयकरण में अन्तर कीजिए।
  157. प्रश्न- विवेकीकरण के प्रमुख पहलू बताइये।
  158. प्रश्न- विवेकीकरण के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  159. प्रश्न- भारतीय उद्योगों में विवेकीकरण की धीमी प्रगति के कारण स्पष्ट रूप से समझाइये।
  160. प्रश्न- विवेकीकरण का मानवीय या सामाजिक पहलू बताइए। विवेकीकरण के उद्देश्य क्या हैं?
  161. प्रश्न- विवेकीकरण की हानियाँ बताइये।

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